दक्षिण कोरिया: संसद ने राष्ट्रपति के Martial Law के फैसले को किया रद्द, लोकतंत्र की जीत
दक्षिण कोरिया की संसद ने राष्ट्रपति द्वारा लागू किए गए Martial Law के फैसले को खारिज कर दिया है। यह कदम देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक अस्थिरता के बीच लिया गया था। हालांकि, इस निर्णय का विरोध न केवल जनता ने, बल्कि संसद के सदस्यों ने भी किया। देर रात हुई बैठक में सांसदों ने सर्वसम्मति से इस फैसले को अमान्य करार दिया।
राष्ट्रपति का फैसला और संसद की प्रतिक्रिया
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने कुछ दिनों पहले देश में Martial Law लागू करने की घोषणा की थी। इसके पीछे का कारण देश में हो रहे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक अस्थिरता बताया गया। राष्ट्रपति ने इसे "आवश्यक कदम" बताते हुए कहा था कि इससे देश में शांति और स्थिरता स्थापित होगी।
लेकिन संसद में इस फैसले का जबरदस्त विरोध हुआ। Opposition parties ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला करार दिया, वहीं सत्तारूढ़ दल के कई सदस्यों ने भी इस निर्णय का समर्थन नहीं किया। बहस के बाद हुए Voting में बहुमत ने राष्ट्रपति के फैसले को Reject कर दिया।
Protests और Social Media का दबाव
राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ जनता ने सड़कों पर उतरकर जमकर प्रदर्शन किया। Protesters ने इसे उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ बताया। Seoul समेत कई प्रमुख शहरों में लोग "No Martial Law" के बैनर लेकर सड़कों पर उतर आए।
Social Media पर भी इस फैसले का कड़ा विरोध हुआ। Twitter और अन्य Platforms पर #DemocracyUnderThreat और #NoMartialLaw जैसे ट्रेंड्स चलने लगे। कई लोगों ने इसे लोकतंत्र पर खतरा बताया और राष्ट्रपति से अपना निर्णय वापस लेने की मांग की।
Martial Law का मतलब और इसकी आलोचना
Martial Law लागू होने पर देश का प्रशासन सेना के हाथों में चला जाता है। इससे नागरिक स्वतंत्रता सीमित हो जाती है, और सरकार को मनमाने फैसले लेने का अधिकार मिल जाता है। दक्षिण कोरिया में इस फैसले को लेकर शुरू से ही आलोचना हो रही थी। राजनीतिक विशेषज्ञों ने इसे संविधान के खिलाफ बताया और चेतावनी दी कि इससे देश की स्थिति और खराब हो सकती है।
संसद का फैसला और लोकतंत्र की जीत
संसद ने राष्ट्रपति के इस फैसले को खारिज कर लोकतंत्र को सुरक्षित रखने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। सांसदों ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत बताया। एक विपक्षी नेता ने कहा, "यह फैसला हमारे देश में संविधान और जनता के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए लिया गया है।"
राष्ट्रपति की चुप्पी और आगे की राह
इस मुद्दे पर राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना के बाद राष्ट्रपति पर राजनीतिक दबाव और बढ़ेगा। देश के राजनीतिक दल अब लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए एकजुट हो रहे हैं।
दुनिया के लिए संदेश
दक्षिण कोरिया की इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में जनता और उनके प्रतिनिधियों की आवाज सबसे महत्वपूर्ण होती है। दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए यह एक बड़ा संदेश है कि तानाशाही निर्णयों को रोका जा सकता है।
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