"राजस्थान में 72 दिनों तक शहीद स्मारक पर चला बेरोजगार युवाओं का ऐतिहासिक आंदोलन: किरोड़ी लाल मीणा के बयान और सरकार की अनदेखी से उठे गंभीर सवाल"
राजस्थान में पिछले कुछ महीनों में एक ऐसा आंदोलन हुआ, जिसने प्रदेश की राजनीति, प्रशासन, और युवाओं की स्थिति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। यह आंदोलन केवल एक संघर्ष नहीं था, बल्कि बेरोजगारी, नेताओं की संवेदनहीनता, और प्रशासन की उदासीनता के खिलाफ एक मुहिम थी। राजीव गांधी युवा मित्रों द्वारा जयपुर के शहीद स्मारक पर 72 दिनों तक चले इस धरने ने राज्य की राजनीति और समाज को हिलाकर रख दिया।
यह धरना उन 5000 बेरोजगार युवाओं का था, जिन्हें राज्य सरकार ने अचानक बेरोजगार कर दिया था। ये वही युवा थे, जो सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रहे थे और उनके पास रोजगार की कोई स्थिरता नहीं बची थी। उनका संघर्ष न केवल रोजगार बहाली के लिए था, बल्कि यह एक सशक्त संदेश था कि जब नेताओं की राजनीति जनता के असल मुद्दों से दूर हो जाती है, तो जनता को अपने हक के लिए अपनी आवाज़ उठानी पड़ती है।
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72 दिनों तक का संघर्ष: शहीद स्मारक पर लाखों उम्मीदों की चिंगारी
राजीव गांधी युवा मित्रों ने सरकार से रोजगार की बहाली की मांग को लेकर 72 दिनों तक शहीद स्मारक पर धरना दिया। यह धरना केवल एक विरोध था, बल्कि युवाओं का ऐतिहासिक संघर्ष था, जिसमें उन्होंने अपनी आवाज़ को सुनाने के लिए कई अनोखे तरीके अपनाए:
दंडवत प्रदर्शन
अपनी आवाज़ को बिना शब्दों के व्यक्त करने का तरीका।
अर्धनग्न प्रदर्शन:
अपनी पीड़ा को उजागर करने का साहसिक कदम।
मुर्गा बनकर प्रदर्शन:
समाज और सरकार के सामने अपनी मांगों को मजाक नहीं बनने देने का तरीका।
मुंडन प्रदर्शन:
यह दर्शाने के लिए कि युवाओं के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं बचा है।
खून से पत्र लिखना:
यह एक प्रतीक था कि इस संघर्ष में उनकी पूरी पहचान और उम्मीदें दांव पर लगी हुई थीं।
महिलाओं और पुलिसिया अत्याचार: आंदोलन का काला दिन
जब प्रदर्शनकारियों ने किरोड़ी लाल मीणा के घर के बाहर धरना देने का फैसला किया, तो पुलिस ने उन्हें बर्बरतापूर्वक हटाया। महिलाओं को घसीटते हुए गाड़ियों में भरकर जंगल में छोड़ दिया गया, जिससे प्रशासन की संवेदनहीनता और क्रूरता का पर्दाफाश हुआ। इस घटना ने आंदोलन में भाग लेने वाली महिलाओं के आत्मसम्मान और उनकी उम्मीदों को तोड़ा, लेकिन साथ ही यह दिखा दिया कि जब किसी भी मुद्दे पर सरकार ध्यान नहीं देती, तो जनता का गुस्सा किस हद तक बढ़ सकता है।
प्रदर्शनकारियों ने अपनी निराशा और गुस्से का इज़हार भगवान राम की मूर्ति तोड़कर किया, जो उनके दिलों की गहरी चोट को दर्शाता था। नैना मीणा, जो कि किरोड़ी लाल मीणा को भगवान समान मानती थीं, उनके साथ हुई बर्बरता ने यह साबित कर दिया कि नेताओं और जनता के बीच एक खाई दिन-ब-दिन गहरी होती जा रही है।
किरोड़ी लाल मीणा का बयान: क्या यह अपनों से मिली पीड़ा का वास्तविक एहसास है?
कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने जब अपने भाई जगमोहन की हार के बाद यह बयान दिया, "मुझे तो सदा ही अपनों ने मारा है," तो यह एक गहरी आंतरिक पीड़ा का प्रतीक था। लेकिन उनके इस बयान को बेरोजगार युवाओं ने अपने ऊपर तंज के रूप में लिया। उनके लिए सवाल उठता है:
"जब हम बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, तब क्या हमारे दर्द और पीड़ा को सरकार ने महसूस किया था? आज जब मंत्री जी को खुद की हार का सामना करना पड़ा, तो क्या उनका दर्द हमारे दर्द से बड़ा है?"
यह सवाल न केवल मंत्री के बयान पर बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र पर भी उठता है कि वे अपनी जनता के वास्तविक मुद्दों पर कब ध्यान देंगे?
सरकार की अनदेखी और नेताओं की संवेदनहीनता
इस धरने का एक बड़ा सवाल यह था कि जब राज्य के युवाओं ने अपनी मांगों के लिए 72 दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया, तो सरकार क्यों चुप रही? क्या नेताओं के लिए चुनावी राजनीति और खुद के स्वार्थ सबसे बड़ा था, जबकि बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दे राज्य के लाखों युवाओं को प्रभावित कर रहे थे?
युवाओं ने दर-दर की ठोकरें खाईं, लेकिन सरकार ने उन्हें अनदेखा किया। दंडवत प्रदर्शन, अर्धनग्न प्रदर्शन, मुर्गा बनकर प्रदर्शन, मुंडन प्रदर्शन—ये सब असमर्थता और गहरी निराशा को दर्शाते हैं। 72 दिनों तक का संघर्ष यह सिद्ध करता है कि जब सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भाग जाती है, तो जनता को खुद अपनी आवाज़ बुलंद करनी पड़ती है।
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राजीव गांधी युवा मित्रों का आंदोलन: एक संदेश और एक चेतावनी
यह आंदोलन सिर्फ बेरोजगारी के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह उन नेताओं के लिए एक कड़ा संदेश था, जो जनता के असली मुद्दों को नज़रअंदाज करते हैं। शहीद स्मारक पर 72 दिनों तक चले इस संघर्ष ने यह साबित कर दिया कि जब जनता अपने हक के लिए खड़ी होती है, तो उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
क्या अब जागेगी सरकार?
अब यह सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार इन बेरोजगार युवाओं की मांगों को सुनेगी और क्या उन्हें उनका हक मिलेगा? या यह आंदोलन भी इतिहास के पन्नों में दबकर रह जाएगा?
राजस्थान की राजनीति में यह आंदोलन एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह न केवल राज्य के युवाओं के लिए एक संघर्ष था, बल्कि यह एक बड़ा संदेश था कि सरकारों को अपनी जनता की पीड़ा को समझना होगा, तभी बदलाव संभव है।
राजस्थान का यह आंदोलन और किरोड़ी लाल मीणा का बयान इस बात का प्रतीक हैं कि नेताओं को जनता के वास्तविक मुद्दों को समझने की जरूरत है। अगर राजनीति केवल सत्ता की चाह तक सीमित रहेगी, तो यह समाज के लिए घातक हो सकती है। युवाओं का यह संघर्ष और उनका यह आंदोलन यह दिखाता है कि जब जनता एकजुट होती है, तो वह बदलाव ला सकती है।
यह घटना राजस्थान की राजनीति के इतिहास में एक अहम अध्याय बनकर उभरी है।
Akhir kab sunegi ye sarkar Yuva mitro ko bahal Karo
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